सोशल मीडिया पर महिलाएं

सोशल मीडिया का नाम आते ही हम भारतीयों के दिमाग में फेसबुक और व्हाट्सएप की छवि बन जाती है। सोशल मीडिया पर महिलाओं को ही हमेशा विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है कि उनको अपनी तस्वीरें अपलोड नहीं करनी चाहिये किसी को निजी तौर पर इन बॉक्स में नहीं भेजनी चाहिये, बहुत ज्यादा फैशनेवल फोटोजत्र को नहीं डालना चाहिये, किसी भी प्रकार के उततेजक कमेंट्स व भाषा का प्रयोग करते में सावधानी बरतनी चाहिये आदि आदि। एक बात यहां विचारनीय है कि जब देश की आधी आबादी और हिस्सेदारी की बात आती है तो वोट के लिये महिलाओं को ही याद किया जाता है, घर गृहस्थी की बातों व सामाजिक हित की बातें की जाती हैं तो महिलाओं को याद किया जाता है। फिर महिलाओं के लिये ही ये सोशन मीडिया के विशेष नियम क्यों बनाये जाते हैं? पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं की स्थिति को मनोरंजन के साधान के रूप में ही माना जाता है व घर- गृहस्थी तक ही महिलाओं की स्थिति को सममान के रूप में देखा जाता है। जबकि पुरूष प्रधानता की हद यह है कि सोशल मीडिया में महिलाओं को पुरूष समाज एक मनोरंजन के साधन के रूप में देखता है वहीं अगर महिला किसी पुरूष को सम्मान देना भी चाहे तो उसको गलत माना जाता है , उसके साथ उस महिला के गलत संबंध माने जाते हैं वो उसकी बहन नहीं बन सकती बल्कि उसकी गर्ल फ्रैन्ड जरूर मान ली जाती है।
पुरूष प्रधान समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है कि उनके घर में भी महिलाएं मां, बहन व बेटी के रूप में मौजूद हैं , उनकी पत्नी या बेटी को कोई उसी निगाह या मानसिंकता से स्वीकारे तो उनको कैसा लगेगा ?
समय के बदलाव में और सोशल मीडिया के परिपेक्ष्य में इस लेख का आलेख पुरूष प्रधान समाज को समझने की बहुत जरूरत है।

---- किरन सिंह


PUBLISHED ON : 06 Oct 2016    |    AUTHOR : ---- किरन सिंह



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